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Showing posts from May, 2020

Nature's mysterious puzzle 'Leslie'

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नमस्कार मित्रो, आशा करता हूँ की आप सभी पाठक सकुशल होंगे, आज मैं आप लोगो को एक ऐसे इंसान की कहानी बताने जा रहा हूँ जिसको कुदरत से अभिशाप मिला था या वरदान, एक तरफ से उसे शारीरिक विकलांगता मिली तो दूसरी तरफ प्रकृति का एक ऐसा अदभुत वरदान मिला जिस से आज वो दुनिया के उन चुनिंदा नामो में शामिल हैं जिसमे इंसान खुद का नाम देखने के सपने देखता हैं। जब विशेष प्रतिभावान चरितार्थ की हो तो उसमे लेस्ली लेम्के का नाम आना स्वाभाविक हैं। लेस्ली का जन्म अमेरिका में सन 1952 में हुआ और उसके जीवन के प्रारंभिक वर्ष अत्यंत कष्टप्रद रहे। लेस्ली को जन्मजाट ग्लूकोमा, सेरिब्रल पाल्सी और ब्रेन डेमेज था। जिसके कारण चिकित्सकों को उसकी आँखे निकालनी पड़ी। उसको जन्म देने वाली माँ ने उसे छोड़ दिया, पर एक सहृदय नर्स, मेरी लम्के ने उसे गोद ले लिया। मेरी के अपने पाँच बच्चें थे और उसकी आर्थिक दशा अच्छी नही थी, पर इसके बावजूद उसने लेस्ली का लालन-पालन सगी माँ से ज्यादा बढ़कर किया। लेस्ली स्वयं खाना खा पाने में सक्षम नही था और वो चलना भी 15 वर्ष की उम्र में सीख पाया, दृष्टिहीन तो वो पहले से ही था। इतने कष्टों के बावजूद एक दिन

Abraham lincoln with huge heart

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नमस्कार दोस्तो, आज आप लोगो के सामने एक ऐसे महापुरुष की जीवनी का एक छोटासा अंश लेकर आया हू जो एक राष्ट्रीय के नायक होते हुए भी अपने आप को परिश्रमी और स्वालम्बन बनाए रखा, मैं अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के बारे में लिखने जा रहा हू। अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन से मिलने उनका एक मित्र पहुँचा। उसने देखा की राष्ट्रपति लिंकन स्वयं अपने जूतों की पॉलिश कर रहे हैं। इतने बड़े देश के राष्ट्रपति को स्वयं अपने जूतों की पॉलिश करते देख उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। अपने मन में उठती जिज्ञासा को रोक न सका और उसने राष्ट्रपति लिंकन से पूछा----मित्र! तुम अपने जूते क्या स्वयं पॉलिश करते हो? तुम तो दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति हो---ये काम करने वाले तो तुम्हे सैकडो मिल जाएँगे॥ राष्ट्रपति लिंकन ने उत्तर दिया--मित्र! अपने जूते दूसरो से पॉलिश करवाने के लिए मैं इस देश का राष्ट्रपति नही बना हूँ। यदि मैं स्वयं अपने कार्यो को करने के लिए दूसरो पर आश्रित रहूँगा तो समाज को क्या दिशा और देशवासियों को क्या संदेश दे पाऊँगा? परिश्रम और स्वावलंबन से देश का उत्कर्ष होता हैं। लिंकन की बाते सुनकर

सामान्य जन को कैसे प्रेरणा दी राजा बिम्बिसार ने =How King Bimbisara inspired the common man

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नमस्कार मित्रो, आज मैं आप लोगो को उस आदर्श और दायलू राजा बिम्बिसार के नियमो की पालना सामान्य जनता ने किस प्रकार अपने जीवनशैली में उतारा उसके बारे में एक कहानी के रूप में बताने जा रहा हू। सामान्य जन प्रेरणा तभी लेते हैं, जब आदर्शो की चर्चा करने वाले, नीतिवेत्ता, नियम बनाने वाले स्वयं भी उनका पालन करे। एक साल लू अधिक चली। प्रजा के झोपडे फूस के बने थे। मजबूत सामग्री उपलब्ध न थी। न जाने क्यो लोग लापरवाह भी रहने लग गए थे सो आयेदिन अग्निकांड की घटनाओं के समाचार दरबार में पहुँचते। बिम्बिसार जैसे दयालु राजा के लिए स्वाभाविक था की वह पीड़ितों की सहायता करे। बहुत अग्निकांड हुए तो सहायता राशि का खर्च भी पहले की तुलना में बहुत बढ़ गया। लोगो की लापरवाही रोकने के लिए राजाज्ञा प्रसारित हुई की जिसका भी घर जलेगा, उसको एक वर्ष श्मशान में रहने का दंड भुगतना पड़ेगा। लोग चौकन्ने हो गए। एक दिन राजा के भूसे के कोठे में आग लगी और देखते-देखते जल गया। समाचार मिलने पर दरबार में राजा को श्मशान में रहने की आज्ञा हुई। दरबारियों ने समझाया----नियम तो प्रजा के लिए होते हैं, राजा तो उन्हें बनाता हैं, इस

सफलता की राह में असफलताओं का सामना =Face failures in the way of success

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सफलता के लिए हर कोई प्रयास करता हैं, लेकीन कुछ को सफलता मिलती हैं तो कुछ लोगो को असफलताएं। हमारी उन गलतियों, भूलों का परिणाम होती हैं, जिन्हें हम अनजाने में दोहराते हैं और इसके कारण अपने प्रयास में कमी लाते हैं। जीवन में गलतियाँ जान-बूझकर नही की जाती, भूलवश हो जाती हैं, इसलिए इन गलतियों के कारण स्वयं को प्रताड़ित करना सही नही हैं, अन्यथा हम आगे नही बढ़ पाएंगे। यदि हम गलतियों के कारण मिलने वाली असफलताओं से डरेंगे, उनका सामना नही करेंगे, तो वह कभी नही कर पाएंगे, जो करना चाहते हैं। जीवन में गलती वही करता हैं, जो कुछ करने का प्रयास करता हैं। इसलिए गलतियों की परवाह किए बिना प्रयास करना चाहिए और अपनी असफलताओं से सीखना चाहिए;क्योंकि यहीं सब सफलता तक पहुँचने के मार्ग की सीढ़ियाँ हैं॥ English translation: Everyone strives for success, but some get success and some people failures. Our mistakes are the result of mistakes and mistakes which we inadvertently repeat and because of this we reduce our efforts. Mistakes in life are not made on purpose, they happen by mistake,

बिना मस्तिष्क का योद्धा "किम पीक"

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नमस्कार दोस्तो मैं आज आपको एक ऐसे योद्धा की कहानी बताने जा रहा हू। जिसका जन्म कुदरत की उन कमियों के साथ हुआ जिनको लेकर इंसान अपने जीवन को कोई दिशा नही दे सकता हैं। उस इंसान की दास्तान आपको एक नई ऊर्जा देगी और आपके जीवन को नई दिशा देगी। किम पीक का नाम एक ऐसे ही सेवाण्ट के रूप में लिया जाता हैं। किम का जन्म लगभग बिना मस्तीस्के ही हुआ, जिसे मेडिकल भाषा में सीरियस ब्रेन डेमेज कहते हैं। किम के मस्तिष्क का पिछला भाग,जिसे सेरीबेलम कहते हैं कोपर्स कैलोसम जो हमारी याददाश्त की क्षमता के लिए जिम्मेदार होता हैं, पूरी तरह से गायब थे। उसके जन्म के समय बालरोग विशेषज्ञ ने उसके पिता को कहा की वो किम को विकलांग बच्चो के केयर होम में डालकर जिंदगी जिंदगी भर के लिए भूल जाएँ;क्योंकि किम मनुष्य शरीर होते हुए भी जानवरो की तरह रहेगा और हमेशा अपंग रहेगा॥ यद्दपि किम के लिए समान्य व्यक्त्ति की तरह चल पाना और कपड़े पहन पाना कभी संभव नही हो पाया, पर डेढ़ वर्ष का होते-होते उसके अंदर कुछ ऐसी विशेषताओं का स्फुरण होने लगा, जिन्हें विलक्षण ही कहा जा सकता हैं। सामान्य व्यक्त्ति एक बार में अधिकतम 9 से 11 अ

गरीब अब्राहम से बना राष्ट्रपति अब्राहम

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अब्राहम एक गरीब मजदूर का पुत्र था। उसे पढ़ने का बहुत शौक था। उसे कहीं से पता लगा की उसके शिक्षक एंड्रयू क्राफर्ड के पास जार्ज वाशिंगटन की जीवनी हैं। अब्राहम का मन उसको पढ़ने के लिए लालायित हो उठा तो उन्होंने मिस्टर क्राफर्ड से पुस्तक उधार देने की प्राथना की। मिसटर क्राफर्ड ने उसके पुस्तक प्रेम को देखते हुए वह पुस्तक उसे दे दी। घर पहुँचते ही अब्राहम वह पुस्तक पढ़ने बैठ गया और पढ़ते-पढ़ते ही उसकी आँख लग गई। जब वह सुबह जागा तो उसका हृदय यह देखकर धक-सा रह गया की रात को बारिश की बौछारें आने से पुस्तक खराब हो गई हैं। वह दुखित हृदय से वह पुस्तक लेकर मिस्टर क्राफर्ड के पास पहुँचा। पुस्तक की दुर्गति देखकर वे अब्राहम पर बरस पड़े और बोले-तुमने अपनी लापरवाही से इतनी कीमती पुस्तक खराब कर दी, इसलिए मैं यह पुस्तक किसी को नही देता था। अब या तो इसकी कीमत भरो अथवा तीन दिन तक खेत पर काम करो तो यह पुस्तक तुम्हारी हो जाएगी। पैसे तो अब्राहम के पास नही थे, पर उसने तीन दिन तक मिस्टर क्राफर्ड के खेत पर जी-तोड़ मेहनत की।परिणामस्वरूप पुस्तक मिलने पर वह खुशी से झूमता हुआ घर पहुँचा और अपने पिता को वचन देत

संकल्प के धनी

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मनुष्य इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना हैं, जिसके लिए कुछ भी असंभव नही हैं। यदि ठान ले तो कुछ भी कर सकता हैं। जीवन का भौतिक क्षेत्र हो या आध्यात्मिक, यदि वह प्रयत्न करे तो किसी भी दिशा में चरम बुलन्दियों को छू सकता हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जो अपने संकल्प-साहस के बल पर अदना-सी, अकिंचन-सी हैसियत से ऊपर उठते हुए जीरो से हीरो बनने की उक्ति को चरितार्थ कर पाए हैं और आज भी कर रहे हैं। रसातल से चरम शिखर की इनकी यात्रा रोमांचित करती हैं और थके-हारे मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। सैण्डो और चंदगीराम जैसे विश्वविख्यात पहलवान बचपन में गंभीर रोगों से ग्रसित थे। शरीर से दुर्बल इन बालको से दुनिया को कोई उम्मीद नही थी। किसी तरह वे शरीर से स्वस्थ हो जाएँ, इतना ही काफी था, लेकीन दोनो बालक दूसरी ही मिट्टी के बने थे। दोनो अपने जमाने के सबसे शक्तिशाली व्यक्त्ति बनना चाहते थे। इस लक्ष्य के अनुरूप उन्होंने अपनी कसरत जारी रखी और एक दिन दुनिया के सामने अपने सपने को साकार कर दिखाया। ऐसे न जाने और कितने ही शरीर से रोगी दुर्बल यहाँ तक की अपंग व्यक्त्ति होंगे, जो आज भी ऐसी सीमाओं को पार करत

पढ़ना ही पर्याप्त नही उसका मनन भी जरूरी हैं

चार स्नातक अपने विषयो में निष्णात होकर साथ -साथ घर लौट रहे थे। चारो को अपनी शिक्षा पर बहुत गर्व था । रास्ते में पड़ाव डाला और भोजन बनाने का प्रबंध किया। तर्कशास्त्री आटा लेने बाजार गया। लौटा तो सोचने लगा की पात्र वरिष्ठ हैं या आटा। तथ्य जानने के लिए उसने बर्तन को उल्टा तो आटा रेट में बिखर गया। कलाशास्त्री लकड़ी काटने गया। सुंदर हरे-भरे पेड़ पर मुग्ध होकर उसने गीली टहनी को काट लिया। गीली लकड़ी से जैसे -तैसे चूल्हा जला, थोड़ा चावल जो पास में था उसी को बटलोई में किसी प्रकार पकाया जाने लगा। भात पका तो उसमे से खुद-वुडी की आवाज होने लगी। तीसरा पाकशास्त्री उसी का ताना-बाना बुन रहा था। चौथे ने उबलने पर उठने वाले खुद-वुडी शब्दो को ध्यानपूर्वक सुना और व्याकरण के हिसाब से इस उच्चारण को गलत बताकर एक डंडा ही जड़ दिया। भात चूल्हे में फैल गया। चारों विद्वान भूखे सोने लगे तो पास में लेटे एक ग्रामीण ने अपनी पोटली में से नमक-सत्तू निकालकर खिलाया और कहा -----पुस्तकीय ज्ञान की तुलना में व्यावहारिक अनुभव का मूल्य अधिक हैं English translation : Four graduates were returning home with a master's

लक्ष्य की और सतत प्रयास करना चाहिए

लक्ष्य की और सतत प्रयास करना चाहिए एक लकड़ी पानी के किनारे पड़ी थी। उसे तीन जानवर खींच रहे थे। मछली नीचे ले जाना चाहती थी, बत्तख ऊपर उड़ा ले जाने की फिराक में थी और कछुआ जमीन पर घसीट रहा था। तीनो पूरा जोर लगा रहे थे, पर वह जहाँ-की तहाँ रही। एक इंच भी आगे ना बढ़ सकी। उसी प्रकार मन, बुद्धि और चित्त जीवन की गाड़ी को अपनी-अपनी दिशा में ले जाना चाहते हैं, पर लक्ष्य एक न होने के कारण जीवन जहाँ -का -तहाँ ही बना रहता हैं और प्रगति जरा भी नही हो पाती। यही बात जीवन के हर पहलू पर लागू होती हैं। प्रगति हेतु मस्तिष्क खाली रखना, अविज्ञात को जानने का प्रयास करना,पूर्वाग्रहों से बचना एवं बिना निराश हुए सतत प्रयास करना अनिवार्य हैं। English translation :: Must strive for the goal      A wood was lying on the banks of the water. Three animals were pulling him. The fish wanted to be taken down, the duck was trying to fly up and the turtle was dragging on the ground. All three were pushing very hard, but where she stayed. Could not move even an inch. Similarly, mind, intellect

आत्मविश्वास को जगाए

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आत्मविश्वास को जगाए संस्कृत व्याकरण के सारभूत ग्रंथ लघुसिद्धांत कौमुदी से कौन अपरिचित होगा? लघुसिद्धांत कौमुदी व्याकरण का वह ग्रंथ हैं, जिसका अध्ययन किए बिना संस्कृत का अध्ययन अधूरा माना जाता हैं और उसका सम्यक अध्ययन करने वाले को संस्कृत का विशारद माना जाता हैं। इस विलक्षण ग्रंथ के रचियता श्री वरदराज को अपने विधार्थी जीवन में वरदराज अर्थात बैलों का राजा कहकर के पुकारा जाता था। उन्हें ऐसा इसलिए कहा जाता था , क्योंकि वे इतने mandbudd थे की अनेको वर्ष पढ़ने के बाद भी उनको संस्कृत का एक भी अक्षर समझ में नही आया था। उनके सहपाठियों के मध्य वे एक मनोरंजन का विषय थे। इसीलिए उन्होंने उनका नाम वरदराज रख दिया था। एक दिन इस सबसे दुःखी होकर वे घर छोड़कर चल दिए और मार्ग में एक मंदिर के चबूतरे पर विश्राम के लिए रूके। थके-हारे थे तो वही नीन्द आ गई। नीन्द खुलने पर उन्होंने एक पतंगे को देखा, उस पतंगे के पैर टूट गए थे, परंतु मात्र आगे वाले अंगो का सहारा लेकर वह दीवार के ऊपर चढ़ पाने में समर्थ हो पाया। वरदराज ने देखा की ऐसा करने में वह कई बार गिरा, परंतु वह जितनी बार गिरा,

We can fight struggle

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Life is a continuum of struggles of varying degrees. One has to fight with diverse, unfavorable situations and troubles every day. The success of life lies in proceeding ahead against all the odds. This appears to be the case with the growth of every living being. Despite enormous gifts of Nature, there also appear enemies and hardships surrounding us in one form or the other. “Survival of the fittest” is a bitter truth in this world. The weaker is prey to the stronger; big fishes eat the tiny ones; sparrows eat insects; hawks eat sparrows. Huge trees grab the food of the small plants around them; the rich men exploit the poor and the mightier rule over the meek. What do these real-world examples teach us? If we do not want to let ourselves be ruined by adversities or be exploited by others and want to live with dignity, we must be alert about eliminating our weaknesses. We should have the courage, vigor, and vitality to fight for our legitimate needs. In essence, we must str

न्याय का खूबसूरत चेहरा

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                      न्याय का खूबसूरत चेहरा            न्यूयार्क के प्रसिद्ध मेयर ला गार्डिया उन दिनो न्यायाधीश भी थे । उनकी कचहरी में एक ऐसा अपराधी पेश किया गया, जो रोटियाँ चराने के अपराध में पकड़ा गया था। पूछने पर मुजरिम ने बताया कि परिवार के गुजारे का और कोई साधन न दीखने पर मैने रोटी चुराने का उपाय अपनाया। कानून के अनुरूप न्यायाधीश ने मुजरिम पर दस डालर का जुर्माना किया, पर उस राशि के वसूल होने कि कोई आशा न थी, इसलिए कचहरी में उपस्थित सभी लोगो पर पचास -पचास सेंट इस कारण जुर्माना किया कि वे अपने देश में फैली इतनी गरीबी के रहते हुए भी शौक कि जिंदगी बसर करते हैं। इस प्रकार कुल आठ डालर इकठ्ठे हुए उनमे दो डालर अपनी ओर से मिलाते हुए ला गार्डिया ने फैसले में लिखा----इस हद तक गरीबी, बेकारी रहने से इस नगर का मेयर भी दंडित होना चाहिए । वास्तव में जिस समाज में कुछ व्यक्त्ति सुख-साधनों में लिप्त हो व शेष को अभावग्रस्त जीवन जीना पड़े , उस समाज में परोक्षत: वे सभी दंड भोगने योग्य हैं जिन्होने औरो कि उपेक्षा की व अपनी स्वार्थपूर्ति में लिप्त रहे। 

अनूठी प्रतिभा कि धनी

                   रुचि और एकाग्रता से पाया मुकाम             पेंसिल्वेनिया में जन्मी एडिथ सेपसन उस अश्वेत परिवार में जन्मी थी, जिन्हें अस्पृश्यों से भी गई-गुजरी स्थिति में रहना और आयें दिन गोरो का त्रास सहना पड़ता था । उन्होंने अध्ययनकाल में अपनी रुचि और एकाग्रता नियोजित कि , फलतः वे एक सफल वकील बन सकी । इसके बाद उन्हें शिकागो हाईकोर्ट का जज बनाया गया । उस अदालत में छोटे अपराधो के अनेक मुकदमे आते थे , वे सभी निपटा देती थी ।               उनके हँसने -हँसाने कि आदत और न्याय कि पृष्टभूमि समझाने पर अधिकांश अपराधी स्वयं ही अपराध स्वीकार कर लेते थे और उचित दंड स्वेच्छापूर्वक सहते थे । गरीबो का समय अदालत का चक्कर काटने में नष्ट न हो, इसलिए वे प्रायः दो मिनिट के औसत से मुकदमा निपटाती थी। वकील करने कि भी अधिकांश को जरूरत न पड़ती । वे जज कि नही , परिवार कि बुजुर्ग कि भूमिका निभाती थी ।               प्रेसिडेंट ट्रुमेन ने उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका का प्रतिनिधि बनाकर भेजा। उच्च पद पर रहते हुए उन्होंने पिछड़े समुदाय को ऊँचा उठाने के लिए अनके रचनात्मक कार्य किए        

पूर्णता तो गहराई में हैं

                           पूर्णता तो गहराई में हैं हिमालय से एक नदी का उदगम हुआ और उसका जल पहाड़ियों से नीचे उतरता हुआ मैदान में आया। एक व्यक्त्ति इस प्रक्रिया का बड़ी गंभीरता से अध्ययन कर रहा था। जल बढ़ता रहा, उसमे अनेक जल-नद आकर मिले। उन्होने भी नदी का रूप ले लिया। नदी बहती चली गयी और अंत में सागर में समाहित जो गयी। देखने वाले व्यक्त्ति ने इस मंजिल कि जल कि मूर्खता माना । हिमालय के उच्च शिखर को छोड़कर अनेक कष्ट-कठिनाइयाँ उठाकर खारे जल में मिलना मूर्खता नही तो और क्या हैं ? नदी ने व्यक्त्ति को देखा तो मनः स्थिति समझ गई । बोली ------तुम हमारी यात्रा का मर्म नही समझ सके । हिमालय कितना भी ऊँचा क्यो न हो , वह पूर्ण नही हैं । पूर्णता तो गहराई में हैं जहाँ सारी कामनाएँ निश्शेष हो जाती हैं । मैं हिमालय जैसी महान ऊँचाई कि आत्मा हू, जो सागर कि गहराई में पूर्णता पाने के लिए निकली थी । निरंतर चलते रहकर ही मैने अपने लक्ष्य को पाया हैं ॥ 

भारत कि पावन भूमि

                        भारत कि पावन भूमि  मैकक्रिडल नामक एक पाश्चात्य विचारक ने मैगस्थिनिज के इंडिका ग्रंथ का उदाहरण देते हुए आपनी पुस्तक में लिखा हैं कि जब सिकंदर भारत पर आक्रमण हेतु निकला , तब उसके गुरु अरस्थू ने उसे आदेश दिया था कि वह भारत से लौटते समय दो उपहार अवश्य लाए -----एक गीता , दूसरा एक दार्शनिक संत ; जो वहाँ कि थाती हैं । सिकंदर जब वापस लौटने को था तो उसने अपने सेनापति को आदेश दिया ---''भारत के किसी संत को ढूंढकर ससम्मान ले आओ । ' '  सैनिक दंडी स्वामी जिसका उल्लेख ग्रीक भाषा में 'डायोजिनीज ' के रूप में हुआ हैं से मिला। दंडी स्वामी से सिकंदर के दूत ने मिलकर कहा -----आप हमारे साथ चले, सिकंदर महान आपको मालामाल कर देंगे। अपार वैभव आपके चरणों में होगा । अपनी सहज मुस्कान में दंडी स्वामी ने उत्तर दिया----हमारे रहने के लिए शस्य -श्यामला भारत कि पावन भूमि , पहनने के लिए वल्कल वस्त्र , पीने के लिए गंगा कि अमृतधार तथा खाने के लिए एक पाव आटा पर्याप्त हैं । हमारे पास संसार कि सबसे बड़ी संपति आत्मधन हैं । इस धन कि दृष्टि से तुम्हारा दरिद्र सिकंदर हमे क्या दे सकत

विश्व कल्याण में ही आत्म कल्याण समाहित हैं

           विश्व कल्याण में ही आत्म कल्याण समाहित हैं विधार्थीयों को आपस में झगड़ते देख गुरु उन्हें समझाते हुए बोले ------''याद रखो ! संपूर्ण जगत एक शरीर हैं । तुम्हारे शरीर में हाथ, नख एवं उंगली कि तरह ही एक महतवपूर्ण अवयव हैं । यदि हाथ , ऊँगली या नाक शरीर से पृथक होकर अलग कट जाते हैं तो फिर उनका सारा महत्व ही नष्ट हो जाता हैं । आत्मा तभी सच्चे अर्थो में आत्माएं हैं , जब वह अपने को परमात्मा का एक अंश अनुभव करे । विराट विश्व का एक कण ही तो मनुष्य हैं । अखिल विश्व कि आत्माएं से हम अपने को पृथक न समझें । हाथ का कल्याण इसी में हैं कि वह अपना हित समस्त शरीर के हित के साथ जुदा रखे , किसी भी अंग को अभाव याँ कष्ट हो तो उसके निराकरण का उपाय करे । यदि हाथ अपना यह कर्तव्य धर्म छोड़ दे और कलाई तक ही अपने आप को सीमित कर ले तो वह स्वंय नष्ट होगा और सारे शरीर को नष्ट करेगा । संकीर्णता ही पतन और विशालता ही उत्थान हैं । कोई वीरान नही , सब अपने ही हैं । सबके कल्याण में अपना कल्याण समाया हुआ हैं । शिष्यों कि समझ में आया कि परस्पर वैमनस्य और मतभेद से किसी का कल्याण नही होता हैं। विश्वकल्याण में ह

महापुरुषों का अदम्य इच्छा शक्ति

                     महापुरुषों का अदम्य इच्छा शक्ति               लूथर ने 21 वर्ष कि कि उम्र में धार्मिक सुधारो के लिए क्रांतिकारी हलचल पैदा कर दी थी । नैपोलियन ने 25 वर्ष कि उम्र में इटली पर विजय प्राप्त कि थी । न्यूटन ने 21 वर्ष का होने से पूर्व ही अपने महत्वपूर्ण आविष्कार कर डाले थे । चेस्टरटन ने जब काव्य-क्षेत्र में प्रवेश करके अपनी प्रतिभा से सबको आश्चर्य में डाला था, तब वह 21 वर्ष का था। विक्टर ह्यूगो जब 15 वर्ष के थे , तब उन्होंने कई नाटक लिखे थे और तीन पुरस्कार जीते थे । सिकंदर जब दिग्विजय को निकला तब कुल 21 वर्ष का था । फ्रांस कि क्रांति का नेतृत्व करने वाली जॉन 17 वर्ष कि थी। स्वामी विवेकानन्द व शंकराचार्य को अल्पायु में ही उपलब्धियाँ मिली थी ।                  वास्तव में यदि उत्कृष्ट इच्छा और अदम्य भावना जाग्रत हो जाए तो किशोर आयु में भी मनुष्य अपनी शक्तियों के सुनियोजन द्वारा ऐसा कुछ कर सकता हैं, जिससे उसका जीवन भी धन्य हो एवं वह अनेको को पार लगा सके 

संतोष ही सबसे बड़ा सुख

                        संतोष ही सबसे बड़ा सुख              जो हैं , उसी में संतोष करना बुद्धिमता हैं । जो अधिक और अधिक के चक्कर में पढ़ते हैं , वे प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं। अंधड़ आया उसके कारण एक विशाल पेड़ गिरा । पेड़ के नीचे एक ऊँट बैठा था । उसकी कमर टूट गई और टहनियों पर लगे घोंसलों में पक्षी और अंडे कुचलकर चुरा हो गए । ढेरो मांस वहाँ बिखरा पड़ा था ।              उस समय एक भूखा सियार उधर से निकला और अनायास ही इतना भोजन पाकर बहुत प्रसन्न हुआ । सोचने लगा ---महीनो तक पेट भरने का मसाला मिल गया । उसने संतोष कि साँस ली । निश्चित होकर उसने नजर दौड़ाई तो नदी तट पर एक बड़ा -सा मेंढ़क दिखा ।              सियार ने सोचा पहले इसे लपक लिया जाए , नही तो यह डुबकी लगाकर भाग खड़ा होगा और हाथ से निकल जाएगा । सियार ने मेंढ़क पर झपट्टा मारा । मेंढ़क नदी में खिसक गया । सियार भी इस चिकनी मिट्टी में फिसलता चला गया और गहरे पानी में समा गया । इसे कहते हैं लालच का फल ॥       
Speech is an invaluable gift of God to man. Words are necessary to exchange thoughts in human society, and the speech imparts voice to these words. The whole fabric of interpersonal relationships in this world is rooted in speech. Just as misuse of wealth is harmful, abuse of speech is very detrimental as well, though very little attention is paid by many in this regard. As a result, many get embroiled in a lot of trouble and spend their entire lives repenting for their errors. It is a well-known anecdote of the epic Mahabharata that Draupadi called Duryodhana, ‘blind son of a blind father.’ Her harsh words sowed a poisonous seed in his mind. This seed initiated events that eventually led to the great war of Mahabharata. So, saying anything thoughtlessly can even result in the creation of dangerous situations. Kabirdas has also spoken thus – ‘Boli ek anmol hai, jo koi bole jani; hiye taraju taul ke, tab mukh bahar aani’ (meaning - the words are priceless. One who kno

Four Pursuits of Human Life our Pursuits of Human Life:

Dharma, Artha, K³ma, and Mokïa — together are defined in the Indian Culture (which in its original form is also honored as the “Divine Culture”) as Puru̳rtha ChatuÌÚaya. These represent the foremost objectives, endeavors, and achievements of a successful, holistically fulfilling, and truly worthy life. Of these, Mokïa is the supreme goal of life; Artha and K³ma are the essential supports of worldly progress and fulfillment, and Dharma is the beacon light of guidance for ideal use of worldly resources and ascent of life towards the supreme goal. The journey of human civilization has proceeded with different shades of culture. Broadly speaking, there are two extreme classes of cultures. One is materialistic - it encourages and thrives on consumption for sensory pleasures and worldly passions. The other extreme is nurtured by spirituality; it originates from noble values and idealism. The materialistic culture revolves around Artha and K³ma, whereas the spiritual cultu

मनन का महत्व और स्वरूप

                           मनन का महत्व और स्वरूप एकांत सेवन में दूसरा वाला कदम उठाईये । उसका नाम हैं - मनन । मनन क्या हैं ? मनन के भी दो हिस्से हैं । एक हिस्से का नाम हैं -आत्म निर्माण । एक का नाम हैं -आत्म विकास । निर्माण में क्या हैं ? निर्माण उसे कहते हैं कि जो चीजें आपके पास नही हैं ,चाहे जो स्वभाव , गुण और कर्म में जो बाते शामिल नही हैं , उसे शामिल कीजिए । मसलन , आप पढ़ें नही हैं ,विधा नही हैं , अब आप कोशिश कीजिए । काहे को ! कि आपको विधा पढ़नी हैं । हम ईमानदारी से रहते हैं , बीड़ी नही पीते हैं , वो तो ठीक हैं आपकी बात , पर मैं यह पूछता हू विधा कि जो कमी हैं , उसको आप क्यो पूरा नही करते हो ? विधा कि कमी को जो पूरा नही करेंगे , तो उन्नति कैसे हो जाएगी ? आपके ज्ञान का दायरा कैसे बढ़ेगा ? आपकी बुद्धि का विकास कैसे होगा ? इसीलिए यहाँ आत्म निर्माण के लिए भी ढेरो काम करने हैं। स्वास्थ्य आपका कमजोर हैं , इसी से तो काम नही चल जाएगा न, कि हम बीड़ी पीते रहे हम बंद कर देंगे । बंद तो करनी चाहिए थी , पर एक और बात भी करनी पड़ेगी । आपको स्वास्थ्य संवर्धन करने के लिए आपके अपने आहार में क्रांतिकारी पर