पूर्णता तो गहराई में हैं

                           पूर्णता तो गहराई में हैं
हिमालय से एक नदी का उदगम हुआ और उसका जल पहाड़ियों से नीचे उतरता हुआ मैदान में आया। एक व्यक्त्ति इस प्रक्रिया का बड़ी गंभीरता से अध्ययन कर रहा था। जल बढ़ता रहा, उसमे अनेक जल-नद आकर मिले। उन्होने भी नदी का रूप ले लिया। नदी बहती चली गयी और अंत में सागर में समाहित जो गयी। देखने वाले व्यक्त्ति ने इस मंजिल कि जल कि मूर्खता माना । हिमालय के उच्च शिखर को छोड़कर अनेक कष्ट-कठिनाइयाँ उठाकर खारे जल में मिलना मूर्खता नही तो और क्या हैं ? नदी ने व्यक्त्ति को देखा तो मनः स्थिति समझ गई । बोली ------तुम हमारी यात्रा का मर्म नही समझ सके । हिमालय कितना भी ऊँचा क्यो न हो , वह पूर्ण नही हैं । पूर्णता तो गहराई में हैं जहाँ सारी कामनाएँ निश्शेष हो जाती हैं । मैं हिमालय जैसी महान ऊँचाई कि आत्मा हू, जो सागर कि गहराई में पूर्णता पाने के लिए निकली थी । निरंतर चलते रहकर ही मैने अपने लक्ष्य को पाया हैं ॥ 

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