विश्व कल्याण में ही आत्म कल्याण समाहित हैं
विश्व कल्याण में ही आत्म कल्याण समाहित हैं
विधार्थीयों को आपस में झगड़ते देख गुरु उन्हें समझाते हुए बोले ------''याद रखो ! संपूर्ण जगत एक शरीर हैं । तुम्हारे शरीर में हाथ, नख एवं उंगली कि तरह ही एक महतवपूर्ण अवयव हैं । यदि हाथ , ऊँगली या नाक शरीर से पृथक होकर अलग कट जाते हैं तो फिर उनका सारा महत्व ही नष्ट हो जाता हैं । आत्मा तभी सच्चे अर्थो में आत्माएं हैं , जब वह अपने को परमात्मा का एक अंश अनुभव करे । विराट विश्व का एक कण ही तो मनुष्य हैं । अखिल विश्व कि आत्माएं से हम अपने को पृथक न समझें । हाथ का कल्याण इसी में हैं कि वह अपना हित समस्त शरीर के हित के साथ जुदा रखे , किसी भी अंग को अभाव याँ कष्ट हो तो उसके निराकरण का उपाय करे । यदि हाथ अपना यह कर्तव्य धर्म छोड़ दे और कलाई तक ही अपने आप को सीमित कर ले तो वह स्वंय नष्ट होगा और सारे शरीर को नष्ट करेगा । संकीर्णता ही पतन और विशालता ही उत्थान हैं । कोई वीरान नही , सब अपने ही हैं । सबके कल्याण में अपना कल्याण समाया हुआ हैं । शिष्यों कि समझ में आया कि परस्पर वैमनस्य और मतभेद से किसी का कल्याण नही होता हैं। विश्वकल्याण में ही आत्मकल्याण समाहित हैं
विधार्थीयों को आपस में झगड़ते देख गुरु उन्हें समझाते हुए बोले ------''याद रखो ! संपूर्ण जगत एक शरीर हैं । तुम्हारे शरीर में हाथ, नख एवं उंगली कि तरह ही एक महतवपूर्ण अवयव हैं । यदि हाथ , ऊँगली या नाक शरीर से पृथक होकर अलग कट जाते हैं तो फिर उनका सारा महत्व ही नष्ट हो जाता हैं । आत्मा तभी सच्चे अर्थो में आत्माएं हैं , जब वह अपने को परमात्मा का एक अंश अनुभव करे । विराट विश्व का एक कण ही तो मनुष्य हैं । अखिल विश्व कि आत्माएं से हम अपने को पृथक न समझें । हाथ का कल्याण इसी में हैं कि वह अपना हित समस्त शरीर के हित के साथ जुदा रखे , किसी भी अंग को अभाव याँ कष्ट हो तो उसके निराकरण का उपाय करे । यदि हाथ अपना यह कर्तव्य धर्म छोड़ दे और कलाई तक ही अपने आप को सीमित कर ले तो वह स्वंय नष्ट होगा और सारे शरीर को नष्ट करेगा । संकीर्णता ही पतन और विशालता ही उत्थान हैं । कोई वीरान नही , सब अपने ही हैं । सबके कल्याण में अपना कल्याण समाया हुआ हैं । शिष्यों कि समझ में आया कि परस्पर वैमनस्य और मतभेद से किसी का कल्याण नही होता हैं। विश्वकल्याण में ही आत्मकल्याण समाहित हैं
Great
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