संतोष ही सबसे बड़ा सुख

                        संतोष ही सबसे बड़ा सुख
             जो हैं , उसी में संतोष करना बुद्धिमता हैं । जो अधिक और अधिक के चक्कर में पढ़ते हैं , वे प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं। अंधड़ आया उसके कारण एक विशाल पेड़ गिरा । पेड़ के नीचे एक ऊँट बैठा था । उसकी कमर टूट गई और टहनियों पर लगे घोंसलों में पक्षी और अंडे कुचलकर चुरा हो गए । ढेरो मांस वहाँ बिखरा पड़ा था ।
             उस समय एक भूखा सियार उधर से निकला और अनायास ही इतना भोजन पाकर बहुत प्रसन्न हुआ । सोचने लगा ---महीनो तक पेट भरने का मसाला मिल गया । उसने संतोष कि साँस ली । निश्चित होकर उसने नजर दौड़ाई तो नदी तट पर एक बड़ा -सा मेंढ़क दिखा ।
             सियार ने सोचा पहले इसे लपक लिया जाए , नही तो यह डुबकी लगाकर भाग खड़ा होगा और हाथ से निकल जाएगा । सियार ने मेंढ़क पर झपट्टा मारा । मेंढ़क नदी में खिसक गया । सियार भी इस चिकनी मिट्टी में फिसलता चला गया और गहरे पानी में समा गया । इसे कहते हैं लालच का फल ॥
      

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